Friday, July 12, 2024

FSSAI का जोरदार एक्शन, खाने की चीज में मिलावट की शिकायत कर सकेंगे, FSSAI ने किया एप लॉन्च

 


FSSAI का जोरदार एक्शन, खाने की चीज में मिलावट की शिकायत कर सकेंगे, FSSAI ने किया एप लॉन्च Complaint by mobile app

FSSAI ने एक मोबाइल ऐप लॉन्च किया है जिसकी मदद से आप किसी भी खाद्य पदार्थ में मिलावट की शिकायत कर सकेंगे। इस ऐप का नाम फूड सेफ्टी कनेक्ट (Food Safety Connect) है और आप इसे गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड कर सकते हैं।

देश में खाद्य पदार्थों में मिलावट तेजी से बढ़ रही है। मसालों से लेकर शहद आदि तक में मिलावट हो रही है। सब्जियों को हानिकारक रंगों में रंगकर बेचा जा रहा है। हाल ही में दो बड़े मसाला ब्रांडों पर विदेश में प्रतिबंध लगा दिया गया और मसाले वापस कर दिये गये। खाने-पीने की चीजों में मिलावट की पहचान करना बेहद मुश्किल काम है, लेकिन अब फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) ने इसे आसान बना दिया है।

FSSAI ऐप के जरिए कर सकेंगे शिकायत complaint by mobile app

FSSAI ने एक मोबाइल ऐप लॉन्च किया है जिसकी मदद से आप किसी भी खाद्य पदार्थ में मिलावट की शिकायत कर सकेंगे। अथवा इस ऐप में किसी भी ब्रांड का FSSAI लाइसेंस या रजिस्ट्रेशन नंबर चेक करने का भी विकल्प है।


इस ऐप के जरिए सरकार की ओर से ग्राहकों को समय-समय पर सलाह भी जारी की जाती है। अगर आपको किसी भी चीज में मिलावट की शिकायत है। ऐप डाउनलोड करने के बाद आपको मोबाइल नंबर या ई-मेल आईडी के जरिए लॉगइन करना होगा। शिकायत दर्ज करने के बाद आप उसका स्टेटस भी जान सकें

Wednesday, May 1, 2024

चिकन के शौकीन हैं तो इसे न पढ़ना बहुत बड़ी भूल होगी.

चिकन के शौकीन हैं तो इसे न पढ़ना बहुत बड़ी भूल होगी.

Venky's जो मुर्गियों और चूज़ों का खाना बनाती है. इनमें टाइलोसिन और अमॉक्सिसीलिन जैसे एंटीबायोटिक्स होते हैं. जो उनके ग्रोथ को बढ़ावा देते हैं. इसे हाल ही में ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म ने एक रिसर्च में बहुत ही हानिकारक बताया है.

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ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म ने वेंकी के कई प्रोडक्ट्स को मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना है. 

Anilmals and birds / जानवरों या पक्षियों से इंसानों में संक्रमण का फैलना काफी भयावह होता है. बर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू का उदाहरण हमने देखा है. 

    पता चला है कि पोल्ट्री यानी मुर्गी पालन के बिजनेस से जुड़ी एक बड़ी कंपनी इस तरह के दवाओं का इस्तेमाल कर रही है जो इंसानों के लिए खतरनाक है. कंपनी का नाम है वेंकीस, ये चूजों के लिए खाना, उनका तेजी से विकास हो इसके लिए प्रोडक्ट बनाती है. इस तरह के प्रोडक्ट्स को ग्रोथ प्रमोटर कहते हैं. यानी चूज़े जल्दी से बड़ेे हो जाएं. अब द ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म (TBIJ) ने ऐसी एक रिपोर्ट जारी की है. रिपोर्ट के मुताबिक Venky's ऐसे एंटीबायटिक्स की मार्केटिंग कर रही है जो काफी खतरनाक मानी जाती हैं.

ये रिपोर्ट के मुताबिक कंपनी पोल्ट्री प्रोडक्शन में तेजी लाने के लिए कई सारे ऐसे प्रोडक्ट्स बेच रही है जिसमें ऐसी दवाएं मौजूद हैं जो मानव स्वास्थ्य के लिए घातक हैं. कई सारी महत्वपूर्ण एंटीबायटिक्स को प्रीवेंटेटिव यूज के तौर पर बेचा जा रहा है. (Preventive use प्रीवेंटेटिव यूज यानी किसी बीमारी के होने की आशंका से बचाव के लिए इस्तेमाल होने वाली दवा). इस प्रैक्टिस को लेकर विवाद भी है क्योंकि इसमें बीमारी होने की आशंका को कम करने के लिए एक दिन के स्वस्थ पक्षियों को भी डोज दिया जाता है. यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि ये जो एंटीबायटिक दवाएं चूजों को दी जा रही हैं वो इंसान के स्वास्थ्य के लिए काफी खतरनाक मानी जाती हैं. यह सब जानते है!

भारत के दक्षिण तेलंगाना की कम से कम दो पोल्ट्री फार्म्स में इस तरह की दवाओं के इस्तेमाल की खबर सामने आई है. TBIJ के मुताबिक इसमें से एक प्रीवेंटेटिव यूज के लिए था, और इसके लिए Venky's की वेबसाइट ने रिकमंड किया था. चूजों का विकास तेज करने के लिए एंटीबायटिक्स का इस्तेमाल यूरोपियन यूनियन के देशों और अमेरिका में बैन है. जबकि प्रीवेंटेटिव यूज कुछ अपवादों को छोड़कर यूरोपिय यूनियन के देशों में पूरी तरह से बैन ban है. विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO ने भी चूजों का तेजी से विकास करने या प्रीटेंटिव यूज में एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल करने का विरोध किया है. ऐसा इसलिए क्योंकि ये दवाएं, उन दवाओं के प्रभाव को कम कर सकती हैं जो इंसानों में इंफेक्शन फैल जाने के बाद दी जाती हैं.


सन 2018 में TBIJ ने पता लगाया था कि Venky's कोलिस्टीन को 'ग्रोथ प्रमोटर' के तौर पर बेच रहा था. कोलिस्टीन का इस्तेमाल इंसानों में गंभीर संक्रमण के इलाज में अंतिम उपाय के तौर पर किया जाता है. मतलब कि ये अंतिम सहारा होती है. लेकिन इसका इस्तेमाल Venky's की ओर से चूजों में किया जा रहा था, ताकि उनका विकास तेजी से हो सके. जब ये खबर सामने आई तो काफी आलोचना हुई. जिसके बाद भारत सरकार ने दवा के इस तरह इस्तेमाल को प्रतिबंधित कर दिया. 

अब दुनियाभर में इसके क्या असर है? जानिए

साल 2019 में हुई एक स्टडी में क़रीब तेरह लाख लोगों की मौत AMR से जुड़े संक्रमण की वजह से हुई है. जो की HIV/AIDS और मलेरिया से मरने वाले लोगों के आंकड़े से भी ज्यादा है.

देखे AMR क्या है?

पोल्ट्री फार्मिंग में एंटीबायोटिक से AMR?

रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) तब होता है जब बैक्टीरिया, वायरस, कवक समय के साथ बदलते हैं और दवाओं पर प्रतिक्रिया नहीं करते हैं जिससे संक्रमण का इलाज करना कठिन हो जाता है. और बीमारी फैलने, गंभीर बीमारी और मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है. दवा प्रतिरोध के परिणामस्वरूप, एंटीबायोटिक्स और अन्य रोगाणुरोधी दवाएं अप्रभावी हो जाती हैं और संक्रमण का इलाज करना कठिन या असंभव हो जाता है. इसका परिणाम यह होता है कि दवाइयां ऐसें इंफेक्शन पर असर नहीं करती, जिससे दूसरों को भी इंफेक्शन फैलने का खतरा बढ़ जाता है. जो बहुत ही खतरनाक है.

इसलीये सरकार को पोल्ट्री फार्मिंग में एंटीबायोटिक के अधिक इस्तेमाल को जल्द से जल्द संज्ञान में लेने की ज़रूरत है. ताकि इससे जुड़े रिस्क को कम किया जा सके. सरकार ने इस तरह की एंटीबायोटिक दवाओं को प्रतिबंधों की श्रेणी में रखा है. लेकिन इसके बावजूद भी इसका इस्तेमाल खूब हो रहा है. प्रत्येक साल मुर्गियों की वजह से खूब सारी नई-नई बीमारियां उत्पन्न होती है. मुर्गियों के सेवन मानव शरीर के लिए आज दिन प्रतिदिन बहुत खतरनाक साबित होता जा रहा है.

Thursday, October 5, 2023

Almonds Real or Fake असली बादाम की पहचान-

 Almonds Real or Fake: मिलावटी और नकली चीजों से बाजार भरा पड़ा हुआ है। लोग असली के दाम पर अपने घर नकली या फिर मिलावटी चीज लेकर जा रहे हैं। क्या बाजार, क्या ऑनलाइन... हर जगह चीजों में या तो मिलावट की जा रही है, या फिर उसे नकली बनाकर बेचा जा रहा है।

ड्राई फ्रूट्स (Dry Fruits) में शामिल बादाम (Almonds) भी बाजार में या तो नकली या फिर मिलावटी मिल रहा है। आम लोग बाजार से खरीदते समय ये नहीं चेक कर पाते हैं कि वह जिस बादाम को खरीदकर अपने घर लेकर जा रहे हैं, वह असली है भी या नहीं।

नकली या फिर मिलावटी बादाम को खाकर हम बीमार भी पड़ सकते हैं। लोगों को नहीं पता है कि वह असली बादाम की पहचान कैसे करें। इसी को लेकर आज हम आपको कुछ तरीकों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसकी मदद से अब आप आसानी से असली और नकली बादाम की पहचान कर पाएंगे।


खुद इन तरीकों से करें असली बादाम की पहचान-

- बादाम की पहचान करने का एक तरीका ये है कि आप उसकी पहचान उसके रंग से करें। नकली बादाम का रंग असली से थोड़ा ज्यादा डार्क दिखाई देता है। साथ ही उसका स्वाद भी हल्का कड़वा होता है।

- बादाम की पहचान करने का एक तरीका ये है कि आप इसे खरीदते समय इसे अपनी हथेली पर रखने के बाद 5 से 10 मिनट के लिए रगड़ें। अगर रगड़ने के दौरान आपके हाथ में गेरुआ रंग रह जाए, तो समझ जाएं कि ये बादाम निकली है और उसमें मिलावट की गई है।

- बादाम की पहचान करने का एक तरीका ये है कि आप बादाम को एक कागज पर दबाकर देखें। अगर बादाम में तेल मौजूद होगा, तो ये कागज पर निशान छोड़ देगा। तेल के निशान छोड़ने का मतलब ये है कि ये बादाम असली है


Monday, September 4, 2023

शरीर में ये बदलाव हैं कैंसर के संकेत, क्या आप जानते है

 

शरीर में ये बदलाव हैं कैंसर के संकेत, क्या आप जानते है

Cancer: जब घातक बीमारीयों के बारे में बात करते हैं तो आप आमतौर पर ’कैंसर’ शब्द सुनते हैं। कैंसर” शब्द अपने आप में यह बताता है यह शरीर के अन्य भागों में फैलने का खतरा रहता है, चलिए जानते हैं क्या है कैंसर के लक्षण,स्टेज और इलाज।

  • वजन कम होना
  • शरीर में सूजन
  • लगातार कफ बनना
  • खाना निगलने में दिक्कत होना
  • रात में पसीना आना
  • तिल में बदलाव होना
  • पेशाब में खून आना
  • दर्द महसूस होना

ज्यादातर कैंसर में ट्यूमर होता है और इन्हें पांच चरणों में डीवाइड किया है।

0 स्टेज यह दिखाता है कि आपको कैंसर नहीं है।


पहला चरण- इस स्टेज में ट्यूमर छोटा होता है और कैंसर सेल्स केवल एक क्षेत्र में फैलती हैं।

पहले और दूसरे स्टेज- पहले और दूसरे स्टेज में ट्यूमर का आकार बड़ा हो जाता है और कैंसर कोशिकाएं पास स्थित अंगों और लिम्फ नोड्स में भी फैलने लगती हैं।

चौथा चरण- कैंसर का आखिरी और बेहद खतरनाक स्टेज, जिसे मेटास्टेटिक कैंसर (metastatic cancer) भी कहते हैं। इस स्टेज में कैंसर शरीर के दूसरे अंगों में फैलना शुरू कर देता है।

कैंसर का इलाज - डॉक्टर कैंसर के प्रकार और अवस्था के आधार पर इलाज का विकल्प तय कर सकता है। आमतौर पर, कैंसर के उपचार में मुख्य रूप से सर्जरी, कीमोथेरेपी, रेडिएशन, हार्मोन थेरेपी, इम्यूनोथेरेपी और स्टेम सेल ट्रांसप्लांट्स शामिल हैं।

सर्जरी - डॉक्टर सर्जरी के जरिए कैंसर के ट्यूमर या किसी अन्य कैंसर प्रभावित क्षेत्र को हटाने की कोशिश करते हैं। कभी-कभी डॉक्टर बीमारी की गंभीरता का पता लगाने के लिए भी सर्जरी करते हैं।

कीमोथेरेपी - कीमोथेरेपी को कई चरणों में किया जाता है। इस प्रॉसेस में ड्रग्स के जरिए कैंसर की सेल्स को खत्म की जाती है। हालांकि, उपचार का यह तरीका किसी-किसी के लिए काफी दुखदाई होता है।

रेडिएशन थेरेपी
रेडिएशन कैंसर सेल्स पर सीधा असर करता है और उन्हें दोबारा बढ़ने से रोकता है। कुछ लोगों को इलाज में सिर्फ रेडिएशन थेरेपी तो किसी-किसी को रेडिएशन थेरेपी के साथ सर्जरी और कीमोथेरेपी भी दी जाती है।

इम्‍यूनोथेरेपी - इम्‍यूनोथेरेपी कैंसर की सेल्स से लड़ने में सक्षम बनाती है।

हार्मोन थेरेपी -इस थेरेपी का उपयोग उन कैंसर के इलाज के लिए किया जाता है, जो हार्मोन से प्रभावित होते हैं। हार्मोन थेरेपी से स्तन और प्रोस्टेट कैंसर में काफी हद तक सुधार होता है।

Disclaimer: इस लेख में बताई गई जानकारी और सुझाव को पाठक अमल करने से पहले डॉक्टर या संबंधित एक्सपर्ट से सलाह जरूर लें। Cancer Warriors की ओर से किसी जानकारी और सूचना को लेकर कोई दावा नहीं किया जा रहा है।

Tuesday, August 15, 2023

क्या चाय का सेवन और पांच प्रमुख कैंसर का खतरा

 चाय का सेवन और पांच प्रमुख कैंसर का खतरा: संभावित अध्ययनों का एक खुराक 

क्या चाय का सेवन और पांच प्रमुख कैंसर का खतरा: संभावित अध्ययनों का एक खुराक

 जागतिक संस्था ने चाय के सेवन और स्तन, कोलोरेक्टल, लीवर, प्रोस्टेट और पेट के कैंसर के खतरे के बीच संबंध के साक्ष्य को संक्षेप में प्रस्तुत करने के लिए संभावित अध्ययनों का एक खुराक-प्रतिक्रिया मेटा-विश्लेषण किया।


 हालाँकि, उपसमूह विश्लेषण से पता चला कि प्रति दिन तीन कप काली चाय की खपत में वृद्धि स्तन कैंसर (आरआर, 1.18; 95% सीआई, 1.05-1.32) के लिए एक महत्वपूर्ण जोखिम कारक थी।

निष्कर्ष

संस्था के परिणामों ने पाँच प्रमुख कैंसरों में चाय की सुरक्षात्मक भूमिका नहीं दिखाई। संघटनो के लिए एक ठोस मामला बनाने के लिए अतिरिक्त बड़े संभावित समूह अध्ययन की आवश्यकता है।


हां ! चाय दुनिया भर में आमतौर पर काली और हरी चाय के रूप में पीया जाने वाला एक लोकप्रिय पेय है। चाय का उत्पादन कैमेलिया साइनेंसिस पौधे की पत्तियों से कई प्रक्रियाओं के माध्यम से किया जाता है। काली चाय संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप और पश्चिमी एशिया में मुख्य चाय पेय है, जबकि हरी चाय चीन, जापान और कोरिया में अधिक लोकप्रिय है ! कई पशु मॉडलों का उपयोग करके व्यापक प्रयोगशाला अध्ययनों से पता चला है कि चाय और चाय पॉलीफेनोल्स का अपने एपोप्टोसिस-उत्प्रेरण, एंटी-म्यूटाजेनिक और एंटीऑक्सीडेंट गुणों के माध्यम से कैंसर के साथ विपरीत संबंध हो सकता है !

हाल की कुछ समीक्षाओं में, शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि हरी चाय, जिसमें प्रचुर मात्रा में पॉलीफेनॉल और कैटेचिन, विशेष रूप से एपिगैलोकैटेचिन-3-गैलेट (ईजीसीजी) 5 शामिल हैं, कैंसर के खिलाफ सुरक्षात्मक प्रभाव डाल सकती हैं। कई दृष्टिकोणों का उपयोग करते हुए, अध्ययनों से पता चला है कि काली चाय में पॉलीफेनोल्स, थियाफ्लेविन (टीएफ) तथा थिएरुबिगिन्स (टीआर) में कीमोप्रिवेंटिव गुण हो सकते हैं। हालाँकि, कैंसर पर चाय के सुरक्षात्मक प्रभाव को दर्शाने वाले अधिकांश साक्ष्य पशु प्रयोगों में उत्पन्न हुए हैं, लेकिन मानव परीक्षणों में प्रदर्शित नहीं किए गए हैं ।


       2007 की विश्व कैंसर अनुसंधान निधि रिपोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि चाय की खपत और कुछ प्रमुख कैंसर के जोखिम के बीच संबंध के प्रमाण अभी भी सीमित और असंगत हैं। कुछ नैदानिक ​​परीक्षणों और महामारी विज्ञान अध्ययनों के परिणामों से ये भी संकेत मिला है कि कैंसर पर चाय या इसके अर्क का निवारक प्रभाव विवादास्पद है। प्रोस्टेट कैंसर पर ग्रीन टी एक्सट्रैक्ट (जीटीई) की प्रभावकारिता का मूल्यांकन करने वाले एक हालिया नैदानिक ​​परीक्षण में, यह पाया गया कि जीटीई में न्यूनतम नैदानिक ​​गतिविधि थी । हालाँकि, एक अन्य चरण II नैदानिक ​​​​परीक्षण ने सुझाव दिया कि जीटीई की उच्च खुराक मौखिक प्रीमैलिग्नेंट घावों के उच्च जोखिम वाले रोगियों में अल्पकालिक परिणाम में सुधार कर सकती है ! संयुक्त राज्य अमेरिका में किए गए एक समूह अध्ययन में, चाय की खपत का कोलोरेक्टल कैंसर से कोई विपरीत संबंध नहीं पाया गया, और चाय की खपत बढ़ने के साथ जोखिम अनुपात (एचआर) में केवल थोड़ा बदलाव आया [10 ] । हालाँकि, चीन में किए गए एक अन्य समूह अध्ययन में, परिणामों से पता चला कि नियमित रूप से हरी चाय का सेवन धूम्रपान करने वालों में कोलोरेक्टल कैंसर के कम जोखिम से जुड़ा था ।  


 जिन पाँच प्रमुख कैंसरों का जागतिक संस्था  नॅशनल लायब्ररी ऑफ मेडिसिन अध्ययन किया वे थे यकृत, पेट, स्तन, प्रोस्टेट और कोलोरेक्टल कैंसर।:


 चाय और (स्तन या प्रोस्टेट या पेट या गैस्ट्रिक या कोलोरेक्टल या कोलोरेक्टम या रेक्टल या मलाशय या कोलन या बड़ी आंत या यकृत या यकृत या हेपेटोमा) और (कैंसर या कैंसर या कार्सिनोमा या कार्सिनोमस या नियोप्लाज्म या नियोप्लाज्म)। 

This information is given only to education purpose.

Thanks to National Library of Medicine

Thursday, October 15, 2015

Exploitation of Indian writers, students, various artists by Govt. of India for copyright

 Exploitation of Indian writers, students, various artists by Govt. of India for copyright


Prime Minister Office of India whether enact any amendment in Copyright Law?

Why major population of country believe that they are slave. Many facilities and schemes of governments in India, are being implemented for selected people who are under control of rulers or higher castes.

United States of America expends crores of dollars for students. But, still in India, for a single page copyright registration fees Rs. 550/- (plus postal charges) being charged. This is grave injustice with students, writers, and various artists. I think --- for individuals of India, copyright registration should be free, except corporate body or institution, company or any other legal person.

Nationwide movement is needed to fight against this an exploitation. Whether a poor student, writer, artist can obtain copyright for a single page in more than Rs.550/-? Answer is ''no''.

Copyright Office is only one in India. It should be in every State of India.
In my view, amendment to Copyright  Act is necessary. Charging registration fees is an exploitation of Indian writers, students, various artists by Govt. of India for copyright registration.

               - Adv. Charusheel Mane